Friday, March 27, 2009

देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है


क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है-अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन. समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मजदूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है और उनकी गाढी कमाई का सारा धन शोषक पूंजीपति हडप जाते है. दूसरों के अन्नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मुहताज है. दुनियाभर के बाजारों को कपडा मुहैया करनेवाला बुनकर अपने तथा अपने बच्चों के तन ढकनेभर को भी कपडा नहीं पा रहा है. सुन्दर महलों का निर्माण करनेवाले राजगीर, लोहार और बढई स्वयं गन्दे बाडों में रहकर ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर जाते है. इसके विपरीत समाज के शोषक पूंजीपति जरा-जरा सी बातों के लिए लाखों का वारा-न्यारा देते है.

यह भयानक असमानता और जबर्दस्ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बडी उथल-पुथल की ओर लिये जा रहा है. यह स्थिति अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकती. स्पष्ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्वालामुखी के मॅुख पर बैठकर रंगरेलिया मना रहे है और शोषकों मासूम बच्चे तथा करोडों शोषित लोग एक भयानक खडृ की कगार पर चल रहे है.

सभ्यता का प्रासाद यदि समय रहेते संभाला न गया तो शीध्र ही चरमराकर बैठ जायेगा. देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है. जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक मानवता को उसके कलेशों से छूटकारा मिलना असम्भव है, और तब तक युद्धों को समाप्त कर विश्व-शान्ति के युग का प्रार्दुभाव करने की बातें महज ढोंक के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है. क्रान्ति से हमारा मतलब अन्ततोगत्वा एक ऐसी समाज-व्यवस्था की स्थापना से है जो इस प्रकार के संकटो से बरी होगी और जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्य सर्वमान्य होगा. और जिसके फलस्वरूप स्थापित होनेवाला विश्व-संघ पीडित मानवता को पूंजीवाद के बन्धनों से और साम्राज्यवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सकेगा.

यह है हमारा आदर्श. और इसी आदर्श से प्रेरणा लेकर हमने एस सही तथा पुरजोर चेतावनी दी है. लेकिन अगर हमारी इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया और वर्तमान शासन-व्यवस्था उठती हुई जनशक्ति के मार्ग में रोडे अटकाने से बाज न आयी तो क्रान्ति के इस आदर्श की पूर्ति के लिए एक भयंकर युद्ध को छिडना अनिवार्य है. सभी बाधाओं को रौंदकर आगे बढते हुए उस युद्ध के फलस्वरूप सर्वहारा वर्ग के अधिनायकतन्त्र की स्थापना होगी. यह अधिनायकतन्त्र क्रान्ति के आदर्श की पूर्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा. क्रान्ति मानवजाति का जन्मजात अधिकार है जिसका अपहरण नहीं किया जा सकता. स्वतंत्रता प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है. इन आदर्शो के लिए और इस विश्वास के लिए हमें जो भी दण्ड दिया जायेगा, हम उसका सहर्ष स्वागत करेंगे. क्रान्ति की इस पूजा-वेदी पर हम अपना यौवन नैवैध के रुप में लाये है, क्योंकि ऐसे महान आदर्श के लिए बडे-से-बडा त्याग भी कम है. हम सन्तुष्ट है और क्रान्ति के आगमन की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे है.

इन्कलाब जिन्दाबाद !

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