Wednesday, October 5, 2011

प्रभुजी तुम चंदन हम पानी


अब कैसे छूटे राम, नाम रट लागी,
प्रभुजी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग अंग बास समानी.

प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवन चन्द चकोरा.

प्रभुजी तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती.

प्रभुजी तुम मोती हम धागा,
जैसे सोने मिलत सुहागा.

प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करे रैदासा.

रैदास

રામનામઃ હ્રદયના ચોખ્ખા લોકો માટે છે...


રામનામ કેવળ થોડા માણસોને માટે નથી, સૌને માટે છે. જે રામનામ રટે છે, તે પોતાના માટે ખજાનો એકઠો કરે છે. એ ખજાનો એવો છે જે કદી ખૂટતો નથી. તેમાંથી જેટલું કાઢો તેટલું ભરાયા કરે છે. તેનો અંત નથી. જેમ ઉપનિષદ કહે છે તેમ, પૂર્ણમાંથી પૂર્ણ બાદ કરો તોયે પૂર્ણ જ શેષ રહે છે. રામનામ શરીરના, મનના અને આત્માના, એમ સર્વ આધિ, વ્યાધિ અને ઉપાધિનો શરતી ઇલાજ છે. પણ એની એક શરત છે, તે એ કે રામનામ દિલમાંથી ઊઠવું જોઈએ. બૂરા વિચારો તમને આવે છે? કામ અને લોભ તમને સતાવે છે? એ દશામાં રામનામ જેવો બીજા કીમિયો નથી.

ધારો કે તમને લાલચ થઈ આવી કે, વગર મહેનતે, બેઈમાનીને રસ્તે, લાખો રૂપિયા જોડી લઉં. પણ તમે વિચાર કરો કે, મારાં બૈરીછોકરાંને માટે આવો પૈસો શું કામ એકઠો કરું? બધા મળીને તે ઊડાવી નહીં મારે? સારી ચાલચલગત, સારી કેળવણી અને સરસ તાલીમના રૂપમાં તેમને માટે એવો વારસો કેમ ન મૂકી જાઉઁ કે બચ્ચાં મહેનત કરીને પ્રામાણિકપણે પોતાની રોજી કમાય? આવું બધું તમે જરૂર વિચારતા હશો પણ તેનો અમલ નથી કરી શકતા. પરંતુ રામનામ અખંડ રટશો તો એક દિવસ તે તમારા કંઠમાંથી હ્રદય સુધી ઊતરી જશે અને પછી રામબાણ બની જશે, તમારા બધા ભ્રમ ટળી જશે, જૂઠો મોહ અને અજ્ઞાન જે હશે તેમાંથી તમને છોડાવશે.

રામનામ એ મેલી વિદ્યા કે જાદુ નથી. ખાઈ ખાઈને જેને બાદી થઈ છે ને તેની આપદામાંથી ઊગરી જઈ ફરી પાછો ભાતભાતની વાનીઓના સ્વાદ ભોગવવાને જે ઇલાજ ખોળે છે તેને સારુ રામનામ નથી. રામનામનો ઉપયોગ સારા કામને માટે થાય. ખોટા કામને માટે થઈ શકતો નથી. રામનામ તેમના માટે છે જે હ્રદયના ચોખ્ખા છે અને જે દિલની સફાઈ કરી હંમેશ શુદ્ધ રહેવા માગે છે. રામનામ કદી ભોગવિલાસની શક્તિ કે સગવટ મેળવવાનું સાધન ન થઈ શકે. રામનામને જંતરમંતર સાથે કશો સંબંધ નથી. એ એક મહાન શક્તિ છે અને એની સરખામણીમાં અણુબોમ્બ પણ કશી વિસાતમાં નથી.

ગાંધીગંગાઃ રામનું નામ લેવું અને રાવણનું કામ કરવું, એ ખરાબમાં ખરાબ વસ્તુ છે. આપણે આપણી જાતને છેતરી શકીએ, જગતને છેતરી શકીએ, પણ રામને છેતરી શકીએ નહીં.

Sunday, October 2, 2011

હું કેવળ પ્રેમ માગીશ....


દરરોજ સવારે જ્યારે અંધકારના દ્વાર ઊઘડી જાય,
ત્યારે અમે તને - મિત્રને - સામે ઊભેલો જોઈએ.

સુખનો દિવસ હોય કે
દુઃખનો દિવસ હોય કે
આપત્તિનો દિવસ હોય,
તારી સામે મારું મિલન થયું,
તો બસ,
હવે મને કશી ચિંતા નથી,
આજ હવે હું બધું જ સહી શકીશ.

જ્યારે પ્રેમ નથી હોતો,
ત્યારે જ હે સખા,
અમે શાંતિ માટે પ્રાર્થના કરીએ છીએ,
ત્યારે ઓછી પૂંજીથી ગમે તેવા આઘાત
સહી શકતા નથી.

પરંતુ જ્યારે પ્રેમનો ઉદય થાય છે
ત્યારે, જે દુઃખમાં,
જે અશાંતિમાં તે પ્રેમની કસોટી થાય,
તે દુઃખને,
તે અશાંતિને માથે ચડાવી શકીએ છીએ.

હે બંધુ, ઉપાસના-સમયે હવે હું શાંતિ નહિ માગું,
હું કેવળ પ્રેમ માગીશ.

પ્રેમ શાંતિરૂપે આવશે,
અશાંતિરૂપે પણ આવશે,
તે ગમે તે વેશે આવે,
તેના મુખ તરફ જોઈને હું કહી શકું કે
તને હું ઓળખું છું,, બંધુ તને ઓળખું છું -
એવી શક્તિ મને મળો.

રવીન્દ્રનાથ ઠાકુર

Saturday, October 1, 2011

मैं क्रांतिकारी हूं, अहिंसक क्रांतिकारी...


महात्मा गांधी 1931 में जब युरोप के दौरे पर थे, तो वामपंथी पत्रकार चार्ल्स पेट्राश ने उनका इंटरव्यू लिया था। बाद में यह इंटरव्यू फ्रेंच अखबार ला-मांद में छपा। इस इंटरव्यू की खासियत यह थी कि इसमें पेट्राश ने गांधीजी से वर्ग संघर्ष और भारत के अमीर वर्ग के बारे में तमाम सवाल पूछे और इन सब चीजों के बारे में महात्मा गांधी क्या सोचते थे, यह बात सामने आई। प्रस्तुत हैं इंटरव्यू के कुछ अंश:

आपको क्या लगता है कि भारत के राजाओं, जमींदारों, उद्योगपतियों और बैंकरों ने अपनी संपत्ति को कैसे हासिल किया है?
फिलहाल तो जनता का शोषण करके ही।

क्या मजदूरों और किसानों के शोषण के बिना भी वे अमीर बन सकते हैं?
हां, वे एक हद तक बन सकते हैं।

क्या उन्हें उस मजदूर से बेहतर सामाजिक जिंदगी जीने का अधिकार है, जो उनके लिए मेहनत करता है?
कोई अधिकार नहीं है। मेरा सामाजिक सिद्धांत यह कहता है कि हम सब बराबर पैदा हुए हैं, इसलिए हमें बराबर अवसर का अधिकार है, इसके बावजूद हम सबकी क्षमताएं बराबर नहीं हैं। हमारी कुदरत ही ऐसी है कि हम सब एक हैसियत के नहीं हो सकते। ऐसा नहीं हो सकता कि हम सबकी चमड़ी का रंग एक हो, हममें एक ही स्तर की बुद्धि हो, इसका नतीजा ही है कि हममें से कुछ लोग ज्यादा भौतिक सुविधाएं बटोरने की क्षमता रखते हैं। जिनमें यह क्षमता है, वे इसी काम में जुट जाते हैं। वे अपनी इन क्षमताओं का अच्छा इस्तेमाल करें, तो यह फायदा लोगों तक पहुंचा सकते हैं। तब वे जनता के ट्रस्टी होंगे और कुछ नहीं।

हमें ज्यादा बुद्धि वाले व्यक्ति को ज्यादा हासिल करने देना चाहिए, उसे अपनी क्षमताओं के इस्तेमाल से रोकना नहीं चाहिए। लेकिन उनकी कमाई में जो सरप्लस है, वह जनता के पास जाना चाहिए। जैसे बच्चों की कमाई का सरप्लस परिवार के पास चला जाता है। वे सिर्फ इस पैसे के ट्रस्टी हैं, और कुछ नहीं। इस चीज को लेकर मैं काफी निराश हूं, लेकिन इस आदर्श में मेरा पूरा विश्वास है। मौलिक अधिकारों की घोषणा में इसे समझा जाना चाहिए।

क्या आप बुद्धि का इस्तेमाल करने वालों के लिए ज्यादा धन की मांग करेंगे?
आदर्श स्थिति में तो किसी को भी अपनी बुद्धि के इस्तेमाल के लिए ज्यादा धन की मांग नहीं करनी चाहिए। जिसे यह बुद्धि मिली है, वह इसका इस्तेमाल सामाजिक मकसद के लिए करे।

क्या आपको लगता है कि भारतीय किसानों और मजदूरों को अपनी आर्थिक आजादी के लिए वर्ग संघर्ष करना चाहिए?मैं खुद उनके लिए क्रांति कर रहा हूं, बिना किसी हिंसा के।

अगर वे राजाओं, जमींदारों, पूंजीपतियों और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांति करते हैं, तो आपका नजरिया क्या होगा?
मेरा नजरिया यह होगा कि अच्छी हैसियत वाले वर्गो के पास जो संपत्ति है, उन्हें उसका ट्रस्टी बनाया जाए। इसका अर्थ हुआ कि वे अपना धन अपने पास रख सकते हैं, लेकिन वे इसका इस्तेमाल लोगों के कल्याण के लिए करेंगे। और इसके लिए उन्हें कमीशन मिलेगा।


यह ट्रस्टीशिप कैसे लागू होगी? उन्हें राजी करके?
सिर्फ मौखिक रूप से उन्हें राजी करके ही नहीं। मुझे अपने समय के सबसे बड़ा क्रांतिकारी कहा जाता है। शायद यह सही नहीं है, पर मैं मानता हूं कि मैं क्रांतिकारी हूं, एक अहिंसक क्रांतिकारी। मेरा हथियार असहयोग है।

क्या आप आम हड़ताल का समर्थन करते हैं?आम हड़ताल भी एक तरह का असहयोग है। जरूरी नहीं कि यह हिंसक हो। ऐसा आंदोलन शांतिपूर्ण है और हर तरह से जायज है, तो मैं उसका नेतृत्व करने को तैयार हूं। इसे हतोत्साहित करने की बजाय प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

आपकी ट्रस्टीशिप की बात समझ में नहीं आई, खासतौर पर कमीशन की?
उन्हें कमीशन लेने का अधिकार है, क्योंकि धन उनके अधिकार में है। उन पर कोई ट्रस्टी बनने के लिए दबाव नहीं डालता, मैं उन्हें ट्रस्टी की तरह काम करने के लिए आमंत्रित करूंगा। मैं संपत्ति के सभी स्वामियों से कहता हूं कि वे ट्रस्टी बनें। उन्हें यह काम संपत्ति के स्वामी के रूप में नहीं, बल्कि उन लोगों के प्रतिनिधि के रूप में करना होगा, जिनका उन्होंने शोषण किया है। मैं उनके कमीशन के लिए कोई आंकड़ा नहीं तय कर रहा हूं, बल्कि कह रहा हूं कि वे उतने की ही मांग करें, जितने के वे खुद को हकदार समझते हैं। मसलन, अगर किसी के पास सौ रुपये हैं, तो मैं उसे कहूंगा कि वह 50 अपने पास रखे और बाकी 50 मजदूरों पर खर्च करे। लेकिन अगर किसी के पास लाखों रुपये हैं, तो मैं उससे कहूंगा कि वह एक प्रतिशत अपने पास रख ले। इस तरह से आप देखेंगे कि मैंने कमीशन के लिए कुछ तय नहीं किया है, क्योंकि यह तो बहुत बड़ा अन्याय होगा।

जनता महाराजाओं और जमींदारों को अपना दुश्मन मानती है। अगर यह जनता सत्ता में आकर इन्हें खत्म कर दे, तो आप क्या कहेंगे?
फिलहाल तो लोग महाराजाओं और जमींदारों को अपना दुश्मन नहीं मानते। लेकिन यह जरूरी है कि जो गलत हो रहा है, उसके प्रति उन्हें जागरूक किया जाए। मैं लोगों को यह नहीं सिखाता कि वे पूंजीपतियों को अपना दुश्मन मानें, मैं उन्हें यह बताता हूं कि ये लोग खुद ही अपना नुकसान कर रहे हैं। मेरे लोग जनता को यह नहीं बताते कि अंग्रेज या जनरल डायर बुरे हैं, बल्कि यह बताते हैं कि वे सभी एक व्यवस्था के शिकार हैं, इसलिए उस व्यवस्था को खत्म करना जरूरी है, व्यक्ति को नहीं।

(सौजन्यः हिंदुस्तान दैनिक)

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ....


वृक्ष हों भले खडे,
हों घने, हों बडे,
एक पत्र छांह भी
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.

तू न थकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
तू न मुडेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.

यह महान द्रश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेत, रक्त से,
लथपथ, लथपथ, लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.

हरिवंशराय बच्चन

अपनी क्षमता भर प्रयास करूंगा, प्रभुवर!


मेरा कार्य संभालेगा अब कौन,
लगे पूछने सांध्यरवि.

सुनकर सब जग रहा निरुत्तर मौन,
ज्यों कोई निश्चल छवि.

माटी का था दीप एक,
बोला यों झुककर -

'अपनी क्षमता भर प्रयास करूंगा, प्रभुवर!'

- रवींद्रनाथ ठाकुर