Wednesday, February 10, 2010

जरा सोचिये...'माय नेम इज खान' के विवाद में फायदो किस को और नुकसान किस को?


हिंदुस्तान के अखबारो में 'माय नेम इज खान' का जलवा है. क्या शिवसेना शाहरूख कि फिल्म का विरोध करके सही कर रही है? 'क्रिकेट के महाफारस' इन्डियन प्रीमियर लीग में पाकिस्तानी क्रिकेटरो को जगह मिलनी चाहिये थी, ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का शाहरुख को अधिकार नहीं है? क्या शाहरुख गद्दार है? शिवसेना को ठिकाने लगाने का समय नहीं आ गया है? क्या 12 फरवरी को फिल्म प्रदर्शित हो पायेगी? क्या शिवसैनिक सिनेमा होल में होहल्ला मचा पायेंगे? क्या है लडाई लोकतंत्र बनाम गुंडागर्दी की है? उफ! मीडिया को जैसे 'खानमेनिया' हो गया है. ऐसा नहीं लगता कि मीडियावालो ने जैसे 'माय नेम इज खान' को जनता के सिर पर मारने का ठेका ले रखा हो? ऐसा नहीं लगता कि महाराष्ट्र सरकार 'माय नेम इज खान' को प्रदर्शित कराने पर अपनी पूरी ताकात लगा रही है? जरा सोचो...इस बहज में फायदा किसका है और नुकसान किसका? पहेले फायदा जान लीजिये जिससे नुकसान की समज पाना आसान हो जाये.

'माय नेम इज खान' पर हो रहे इस पूरे बवाल में शिवसेना और कोंग्रेस दोनो को फायदा है. आप मानो या ना मानो, शिवसेना को इस विवाद से संजीवनी जरुर मिल गयी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना मृतप्रायः सी हो गयी थी, पर उस में 'माय नेम इज खान' की बवालने संजीवनी प्रदान कर दी है. अब इस विवाद से शिवसेना को थोडा फायदा होगा ज्यादा, इसका पता तो अगले साल होने वाले बृहदमुंबई म्युनिसिपल कोर्पोरेशन के चुनाव में चल जायेगा. यहां शिवसेना का शासन है. ये चुनाव शिवसेना के अस्तित्व के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न है और इसके लिये है बाल ठाकरे ने एक बार फिर सेना की कमान संभाली है. इन्डियन प्रीमियर लीग और 'माय नेम इज खान' से शरु हुई आग में मायानगरी मुंबई अगले साल बृहदमुंबई म्युनिसिपल कोर्पोरेशन के चुनाव तक जलती रहे तो इस में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये. सेना के साथ साथ कोंग्रेस को भी इस से फायदा हो रहा है.

कोंग्रेस इसे लोकतंत्र बनाम गुंडागर्दी की लडाई कह रही है. पर क्या ये बात सही है? अब जरा सोचिये, जो बात कोंग्रेस कर रही है वहीं बात अखबार और खबरिया चैनल नहीं कर रहे है? सभी अखबार और खबरिया चैनल आप को शिवसेना के जंगलराज का अंत करने की बात कर रहे है. लोकतंत्र में जंगलराज को कोई स्थान नहीं होना चाहिये ये बात को कोई नकार नहीं सकता, लेकिन, महाराष्ट्र सरकार ने लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर 'माय नेम इज खान' को प्रदर्शित करने के लिये हजारो कि संख्या में सिनेमा होल के बहार हजारों सुरक्षा कर्मचारी तैनात कर दिये है. तो क्या यहीं सरकार मुंबई में दो साल पहेले आयोजित रेलवे बोर्ड के इम्तहान के वक्त उत्तर प्रदेश और बिहार के जवानो की सुरक्षा लिये ऐसे सुरक्षा बंदोबस्त नहीं कर सकती थी? क्या वो बंदोबस्त लोकतंत्र के दायरे में नहीं आता था? दरस्सल कोंग्रेस और मीडिया ये लडाई लोकतंत्र के है ऐसा हमारे मन में ठांसना चाहते है. लोकतंत्र के नाम पर दोनो अपना-अपना उल्लु साध रहे हैं.

कोंग्रेस अपनी खोई हुई मुस्लिम मतबेंक वापस पाना चाहती है. वो देश के सबसे बडे राज्य उत्तरप्रदेश में मु्स्लिम समुदाय को अपने साथे जोडना चाहती है. इसी उद्देश्य के साथे वो धीरे धीरे शाहरूख को अपना 'मुस्लिम चहेरा' बनाने की और आगे बढ रही है और कोंग्रेस हाई कमान्ड ने अशोकराव चव्वाण को किसी भी सूरत में 'माय नेम इज खान' को प्रदर्शित कराने का फरमान जारी किया है. वो इस फिल्म को प्रदर्शित करवा के मुस्लिम बिरादरो का दिल जीतना चाहती है. आप टीवी पर देखे तो कोंग्रेस का हर बडा नेता शाहरूख की फिल्म को प्रदर्शित करवाने की कसम खाता दिखाई देगा. अभी फिल्म प्रदर्शित होने दो. उसके बाद शायद आप को ये देखनो को भी मिले तो आश्चर्य नहीं कि राहुल गांधी कोई सिनेमा होल में जायेंगे और 'माय नेम इज खान' के कसीदे पढेंगे. और मीडिया?

मीडिया को तो हम सभी जानते है. आजकल मीडिया का धर्म किसी व्यक्ति, कोई राजकीय पक्ष, कोई फिल्म या फिर इन्डियन प्रीमियर लीग जैसे फारस का प्रचार करने का हो गया है. उसी के समाचार प्रकाशित होते है तो बडे-बडे कथित दिग्गज लेखर ऐसे ही प्रंपच या फिर राहुल गांधी की मुंबई मुलाकात के फारस को बडी फतह होने का ब्युगल फूंकते है. लेकिन इस में सबसे ज्यादा नुकसान किसको है? मुझे, आपको, मुंबईकर को और इस देश की जनता को.

आज हम सब सामान्य जन राजकीय पक्ष के लिये मतबेंक, अखबारो के मालिको के लिये उनका लक्षित वर्ग यानी कि टार्गेट ओडियन्स और फिल्मवालो के लिए हम पहेले या दूसरे सप्ताह में कमाई करने का जरिया बन गये है. हम सब एक या दूसरे राजकीय पक्ष, शाहरुख और राहुल जैसे फारसबाज, सेना जैसे संकुचित दिमागवाले राजकीय पक्ष, क्रिकेट को महाफारस में तबदिल करनेवाले ललित मोदी और इन सभी के हाथो बिक गये मीडिया के संगठित छल की चपेट में आ गये है. इन सभी लोगो ने मिलकर गोबल्स को अपना आदर्श मान लिया है और अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिये जनता के मनमस्तिष्क से खेल रहे है....क्या जरुरत नहीं है सच को देखने के लिये स्वतंत्र सोच विकसीत करने की? क्या जरुरुत नहीं है 'रण' की? जरा सोचिये....दोस्तो...

2 comments:

Pranay said...

entire nation is worrying about khan(s) and not for aam.

Shailesh said...

nice one keyurbhai, keep it going...
- Shailesh