Thursday, May 21, 2009

...और राजीव गांधी के टुकडे-टुकडे हों गये


सितम्बर, 1990 के एक उमस भरे दिन तमिलनाडु में स्थित प्रसिद्ध हिन्दु तीर्थ-स्थान रामेश्वरम के तट पर एक कश्ती पहुंची. श्रीलंका के तमिल शरणार्थियों से भरी इस कश्ती में सवार पुरुष और स्त्रीयों का समूह भारत पहुंचकर बहुत खुश था. अपने देश में तमिल गुरिल्लों और श्रीलंकाई सेना के बीच चले रहे हिंसक निर्मम युद्ध के हिंसक माहौल से भारत शांत और सुरक्षित था. लेकिन इन शरणार्थियों में दो पुरुष और एक स्त्री का एक गुट भी आया था, जो थोडे महिनें के बाद पुरु विश्व को स्तब्ध कर देने वाला था. ये गुट मद्रास (आज के चेन्नाई) चला गया.

कुछ ही दिन बाद शरणार्थियों की एक और कश्ती तमिलनाडु के तट पर पहुंची. उसमें दो पुरुषो और एक स्त्री का एक दूसरा गुट नीचे उतरा और वही भी मद्रास तरफ रवाना हों गया. इन छ शरणार्थियों पर किसी का ध्यान नहीं था. इन दोनो गुट ने अलग-अलग घर किराए पर लिए. ये एक शैतानी योजना की शुरुआत थी. जी हां, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्या के षडयंत्र का यह पहेला कदम था और ये छ शऱणार्थी कोई और नहीं, पर राजीव गांधी की हत्या के 'मास्टरमाइन्ड' वेल्लुपिल्लाई पिरापहरन यानी कि प्रभाकरण के गुर्गे थे.

ये दोनो गुट लिट्टे के एक सदस्य सिवरासन के आदेश पर मद्रास पहुंचे थे. सिवरासन लिट्टे के गुप्तचर विभाग के प्रमुख पोट्टु अम्मन का खास सिपहसालार था. प्रभाकरण ने राजीव गांधी की हत्या की योजना बनाई तो इस काम के लिये शक्लो-सुरत और बोलचाल से तमिलनाडु का निवासी प्रतीत होते सिवरासन को ही चुना. योजना तय हो जाने के बाद उसने मद्रास और उसके आसपास किराए के सुरक्षित मकानों की एक श्रृंखला जुटाने का फैसला किया.

कुछ हफ्तों बाद लिट्टे के दो सूत्र तमिलनाडु पहोंचे. इन दोनो सूत्र का कोड नाम 'निक्सन' और 'कान्तन' था. सिवरासन और ये दोनो सूत्र मद्रास में डेरा डाले हुए दोनो गुटों के पास पहोंचे. सिवरासन एक गुट के साथ थोडे दिन रहा और जरूरी सूचना-निर्देश देकर जनवरी, 1991 में श्रीलंका अपने आका प्रभाकरण पासे लौट गया.

सिवरासन का सोचता था के राजीव गांधी की हत्या के लक्ष्य को अंजाम तक पहोंचाने के लिए वे छ शरणार्थी काफी नहीं थे. उसने लिट्टे के लंडन स्थित प्रतिनिधि किट्टु को फोन किया और मद्रास में किसी विश्वसनिय भारतीय सूत्र का नाम जानना चाहा. किट्टुने उसे 'मथुराजा' का नाम दिया. किट्ट को इस बात को बिलकुल अंदाज नहीं था कि लिट्टे के साथ मथुराजा के संबंधो के कारण भारतीय इन्टेलिजन्सी ब्युरो उसके फोन टेप कर रहा था. किट्टुने उसे फोन करके श्रीलंका से आई लिट्टे की नई टीम की मदद करने के लिए कहा तब इन्टेलिजन्सी ब्युरो के कान खडे हो गए. यह दिसम्बर, 1990 की बात है.

इस बीच मथुराजाने निक्सन को कुछ ऐसे भारतीयो से मिलवाया जो राजीव गांधी हत्याकांड में बहुत अहम भूमिका निभानेवाले थे. सिवरासन भी तमिलनाडु लौट चुका था और उसके साथे एक खतरनाक साथी मुरुगन भी था. मथुराजाने मुरुगन को एक स्थानिक परिवार से मिलवाया. फिर अचानक मथुराजा श्रीलंका चला गया.

इधर मुरुगन तमिलनाडु में राजीव गांधी की हत्या की पूर्वतैयारी करने आया था. वह तमिलनाडु के जेलों और पुलिस मुख्यालयों के चित्र भी खींचता रहता था. एक तरफ वह लिट्टे के लिए जासूसी कर रह था तो दूसरी और वो जिस घर में रहेता था उसी की युवा लडकी नलिनी के प्यार के बंधन में बंध चुका था. ये वो हीं नलिनी है जो राजीव गांधी के हत्याकांड में अभी जेल में है और जिसे मिलने प्रियंका गांधी गई थी.

राजीव गांधी की हत्या की भंयकर योजना एक साथ दो जगह आगे बढ रही थी. एक तमिलनाडु में और दुसरी श्रीलंका में. मथुराजा के अचानक जाफना चले जाने से भारतीय इन्टेलिजन्सी ब्युरो सतर्क हो गया था. राजीव गांधी की हत्या के लिए उनकी सुरक्षा में सेंध लगाना जरुरी था और उसके लिए भारतीय अधिकारीयों को धोखे में रखना आवश्यक था. इसके लिए प्रभाकरन के शागिर्द दिमाग ने एक चाल चली. उसने उसके दोस्त और मद्रास में रहेते तमिल कवि कासी आनन्दन को राजीव गांधी से भेंट करने और उन्हें आगामी चुनावों के लिए शुभकामना देने के लिए कहा. कासी एक भारतीय अखबार के मालिक की मदद से 5 मार्च, 1991 राजीव गांधी को मिला और प्रभाकरन का संदेश पहुंचाया.

थोडे दिन बाद लन्दन निवासी एक श्रीलंकाई बैंक-मालिक ने भी राजीव गांधी से भेंट की और लिट्टे के साथ सम्बन्ध सुधारने का अनुरोध किया. दरअसल ये मुलाकात राजीव गांधी को असावधान करने के लिए आयोजित की गई थी. प्रभाकरन पुरानी बातों को भूलने को तैयार है ये गलतीफहमी के राजीव गांधी और भारतीय सुरक्षा अेजन्सी हों गई. लिट्टे की चाल कामयाब हो गई थी. भारत में नए चुनावों की घोषणा हों चुकी थी. राजीव गांधी प्रचार अभियान में जुट गए थे. लेकिन भलेभोलें और राजनीति में होते हुए भी राजनैतिक दावपेंच से बिलकुल अन्जान नहेरु के ये पौत्र टुकडे-टुकडे होने को आगे बढ रहे थे.

सिवरासन मई, 1991 में तमिलनाडु लौटा और इस बार उसके साथे था राजीव गांधी का यमराज-धानु. सांवले रंग की पच्चीस साल की धानु भारत में गुरिल्ला-युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी थी. अब वह लिट्टे के सबसे खतरनाक आत्मघाती जत्थे की सदस्या थी. 21 मई को राजीव गांधी श्रीपेरुंबदूर की सभा को सम्बोधित करनेवाले थे.इससे पहेले लिट्टे के ये हत्यारें यह पता लगाना चाहते थे कि क्या तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दरमियान उन्हें राजीव गांधी के नजदीक जाने का अवसर मिलेगा. उन्होंने ये मौका मिल भी गया. उन्होंने तत्कालिन प्रधानमंत्री वी पी सिंह की एक चुनाव सभा में अपने अभियान का रिहर्सल करने का फैंसला किया.

धानु एक फोटोग्राफर के साथे मद्रास से 25 मील दूर एक चुनाव सभा में पहुंच गई. सभा के पूरी होने के बाद प्रधानमंत्री वापस जाने लगे तो धानु धीरे धीरे उनके पास पहुंच गई और उनके पैर छू लिए. बिलकुल इसी तरह से वो राजीव गांधी के पास जाकर उनकी हत्या करेगी ये तय हो गया.

डेनिम के कपडे से बनी एक बंडी के साथ शक्तिशाली सी-4 आर.डी.एक्स विस्फोटकों से लैंस ग्रेनेड बांधे गये. ये ग्रेनेड एक तार द्वारा पहले एक-दूसरे से और फिर 9 वोल्ट की एक बैटरी से जोडे गये थे जिसके साथे एक बटन जुडा हुआ था. 21 मई की शाम धानु को बंडी पहनाई गई और सिवरासन इस मोंते के जखीरे को साथ लिए अपनी मंझिल की और बढने लगा. सिवरासन, धानु और नलिनी को एक भारतीय फोटोग्राफर हरिबाबू से मद्रास बस अड्डे पर मिलना था. अपने साथे एक जीवित मानव बोंब ये इस बात को तो युवा हरिबाबू को इल्म भी नहीं था. वे सब चुनाव रैली के लिए निकल पडे. सिवरासन मंच के पास खडा रह गया, जैसे कोई रिपोर्टर हो. हरिबाबू उसके करीब था. और धानु?

नारंगी रंग की सलवार कमीज पहनी धानु हाथ में चंदन का हार लिए वीआइपी प्रवेश द्वार के पास अपने शिकार का इंतजार कर रही थी. एक महिला पुलीसकर्मीने उससे पूछताछ करने का प्रयास किया तो फोटोग्राफर हरिबाबू उसकी मदद की लिए पहुंच गया. उसे पता नहीं था वो खुद अपनी मौत के पास पहुंच गया है. धानु को मनोमन हरिबाबू की नादानी पर हंसी आ रही थी. वो हरिबाबू सें बातें बना रही थी कि घोषणा हुई कि राजीव गांधी आ गयें है. धानु को अपना कर्तव्य याद आया. वो अपने ईश्वर को याद करने लगी. बस इस दुनिया वों बहुत चंद लम्हों की महेमान थी. उसें एक महान लक्ष्य के लिए शहीद होनें की दिशा में आगें बढने का गर्व था. राजीव गांधी आहिस्ता आहिस्ता मंच की तरफ आगे बढ रहे थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था की मंच पर पहोंचने से पहेंले यमराज के रुप में आई एक युवती उन्हें मौंत के आहोश में समाने को बेताब है.

पक्ष के सदस्य और सुरक्षा अधिकारी उनेक पीछेपीछे चल रहे थे. धानु चुपके से एक भारतीय स्त्री और उसकी किशारी आयु के बेटी पास जा खडी हुई. धानु भोली-भाली और उत्साहित नवयुवती प्रतीत हो रही थी. राजीव गांधी उसकी तरफ बढे. धानु भी आगे आई, लेकिन एक महिला पुलिसकर्मीने धानु को पीछे हटाने की कोशिश की. सिवरासन को लगा कि खेल बिगड जायेगा. लेकिन राजीव गांधी ने रास्ता आसान कर दिया. उन्हों ने अपने आखरी शब्द कहें, 'हरेक को मौका मिलना चाहिए.'

धानु की जान में जान आई. मानव-बम इस घडी की बैसब्री से प्रतिक्षा कर रहा था. दस बजे का वक्त था. हरिबाबू अपने जीवन के अंतिम तस्बीरें खींच रहा था. धानु खामोशी से राजीव गांधी के ठीक सामने खडी हो गई. शिकार खुद सामने आकर खडा हो गया था. देर किस बात की थी! उसने चंदन का हार पहनाया अने फिर उनके चरण छूने कि लिए नीचे झुकी. और?

राजीव गांधी उसे सहारा देने के लिए थोडा झुके. लेकिन खडा किसे होना था. उसने बटन दबाकर अपनी बंडी से बंधे विस्फोटको को सक्रिय कर दिया. एक भयंकर धमाका और देश के एक युवा नेता के टुकडे-टुकडे हों गये. उनका चेहरा बच नहीं पाया. उन्हें उनके पांवो में पहनी सफेद 'लांटो' चप्पलों से पहचना गया. देश को 21वी सदी में ले जाने का सपना संजोनेवाला एक युवा नेता को अपनी अन्जान गलतीयों की इतनी बडी किंमत चुकानी पडेगी इसका इल्म किसीको नहीं था.

सिवरासन वहां से भाग गया, लेकिन बहुत कोशिशो के बाद वह तमिलनाडु से निकलने में सफळ नहीं हो पाया. इस हादसे के तीन महिने बाद दुर्घटनास्थळ से मीलों दूर उसके गुप्त ठिकानो पर पुलिस ने छापा मारो तो उसने अपने-आपको गोली मार दी. और प्रभाकरन? श्रीलंका की सरकारने दो दिन पहेलें उसे मारने का दावा किया है....

(संदर्भः एक अबूझ मस्तिष्क के भीतर-दुनिया के सबसे निर्मम गुरिल्ला नेता प्रभाकरण की गाथा, एम आर नारायण स्वामी)

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